डिब्रूगढ़ में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की श्री हरि कथा का द्वितीय दिवस

Second day of Shri Hari Katha of Divya Jyoti Jagrati Sansthan in Dibrugarh

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान – जिसके संस्थापक एवं संचालक परम पूजनीय गुरूदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी है – एक सामाजिक एवं आध्यात्मिक संस्था है, जो समाज को जागरूक करने हेतु विविध कार्यो में संलग्न है | समाज कल्याण कि ऐसी ही भावना से ओतप्रोत दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान डिब्रूगढ़ शाखा द्वारा काली मंदिर, काली बाड़ी, डिब्रुगढ़ में तीन दिवसीय ” श्री हरि कथा ” का भव्य आयोजन गत 8 दिसंबर से आगामी 10 दिसंबर तक किया जा रहा है, जिसका समय दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक का रखा गया है | इस कथा का द्वितीय दिवस बहुत ही सुन्दर ढंग से व्यतीत हुआ|
श्री हरि कथा के द्वितीय दिवस गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री रेखा भारती जी  ने भगवान  श्री कृष्ण की अनेक लीलाओ जैसे भगवान श्री कृष्ण का दुर्योधन को विराट रूप दिखाना, भगवान श्री की माखन चोरी को सभी समक्ष रखते हुए उनके अध्यात्मिक रहस्य को उजागर किया। आज मानव उस ईश्वर की खोज में बाहर भटक रहा है, जहां उसे निराशा के सिवा कुछ नहीं मिलता। इंसान को आज अपनी खोज बदलनी होगी बाहर नहीं उसे अपने भीतर खोजना होगा क्योंकि संत महापुरुष लिखते हैं कि ईश्वर प्रत्येक मानव के घट भीतर है। अगर आप उसे जानना चाहते हैं, उससे मिलना चाहते हैं तो आपको अपने भीतर जाना होगा बाहर नहीं। धार्मिक ग्रंथ लिखते हैं
“घट में है सूझे नहीं,लानत ऐसी जिंद।
तुलसी या संसार को, भयो मोतिया बिंद।।”
साध्वी जी ने समझाया कि ब्रह्मज्ञान आत्म साक्षात्कार का सर्वोच्च विज्ञान है, जिसे समय के पूर्ण गुरु द्वारा प्राप्त किया जाता है। महाभारत में भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद का उदाहरण देते हुए, साध्वी जी ने बताया कि भगवान ने अर्जुन से कहा था – “अर्जुन, तुम इन बाहरी आँखों से मेरे शाश्वत रूप को नहीं देख सकते।” तत्पश्चात् भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के दिव्य नेत्र को जागृत करते हैं, जिससे उसे अपने भीतर भगवान के दिव्य परमस्वरूप का अनुभव प्राप्त होता है। ब्रह्मज्ञान की दीक्षा द्वारा प्राप्त यह दिव्य अनुभव ही अर्जुन की सम्पूर्ण कला, शक्ति, भक्ति का स्रोत बने, जिसके द्वारा अर्जुन अपने जीवन में हर परिस्थिति का सामना करते हुए आगे भी बड़ा और शाश्वत भक्ति से जुड़कर जीवन को सफल भी बनाया। साध्वी जी ने कहा कि महाभारत का युद्ध अधर्म पर धर्म की विजय है। आज भी अधर्म चरम सीमा पर है। ऐसे में मानव के भीतर धर्म का प्रकटीकरण अति अनिवार्य है। मानव धार्मिक तो दिखता है पर उसकी जीवन में धर्म नहीं दिखता। जब मानव आदि शक्ति मां का दर्शन अपने घट भीतर कर लेता है, उसको जान लेता है  तो उसके भीतर धर्म स्थापित हो जाता है , क्योंकि धर्म का अर्थ होता है धारण करना। आज इंसान के पास बाहरी ज्ञान तो बहुत है पर सही दिशा नहीं है क्योंकि जीवन में धर्म नहीं उतरा। इसी सन्दर्भ में उन्होंने बताया कि गुरुदेव श्री आशुतोष जी महाराज जी कहते हैं कि “जिस प्रकार रॉकेट में ईंधन है पर अगर सही दिशा नहीं है तो वह मात्र विनाश ही करेगा। इसलिए यह अति आवश्यक है कि हमारे पास शक्ति के साथ साथ सही दिशा का  बोध भी हो”। मानव समाज भी आज दिशाविहीन हो गया है, कहाँ तो परमाणु शक्ति का अविष्कार शांतिपूर्ण समाज कल्याण के लिए हुआ था, पर आज हमने ऐसे परमाणु अस्त्रों के अम्बार लगा दिए है , जो कई-कई बार इस पृथ्वी का सर्वनाश कर सकता है।
 उन्होंने समझाया कि इसीलिए आज यह अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है कि समाज को सही दिशा मिले और हम अवनति नहीं, उन्नति की ओर अग्रसर हो धर्म के मार्ग पर बढ़े। और उनसे ही जुड़कर मनुष्य की विवेक बुद्धि जागृत हो सकती है। तत्पश्चात ही समाज कल्याण के महान कार्य को पूर्ण किया जा सकता  है।
सभी क्षेत्र निवासियों ने इस ज्ञान गंगा के स्नान कर अपने मन को पवित्र किया। इस कथा में सुमधुर भजनों का गायन साध्वी सुश्री पदंप्रभा भारती जी तथा साध्वी सुश्री अभिनन्दना भारती जी ने किया| मंच संचालन  साध्वी सुश्री सुषमा भारती जी ने किया । प्रभु के भजनों का भक्तजनों ने बहुत लाभ उठाया और वे भी प्रभु के कीर्तन में झूमे |इस प्रकार से कार्यकम के द्वितीय दिन का समापन बहुत ही सुन्दर तरीके से हुआ |
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