कोचिंग हादसे के सबक
Lessons from coaching incident
क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, तिहाड़ जेल से ही, अपनी सरकार की जवाबदेही स्वीकार करेंगे? क्या वह यह भी स्वीकार करेंगे कि उनकी आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली में सरकार और नगर निगम चलाने लायक नहीं है? क्या केजरीवाल अब दिल्ली वालों का आह्वान करेंगे कि चुनाव में ‘आप’ को बहुमत न दिया जाए? राजधानी दिल्ली में तीन युवाओं की जो दर्दनाक, त्रासद मौतें हुई हैं या ऐसे ही हादसे हो रहे हैं, क्या उनके पीछे भी प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की साजिश है? दिल्ली में मुख्यमंत्री केजरीवाल के नेतृत्व में निर्वाचित सरकार है। जेल में बंद होने के बावजूद वह मुख्यमंत्री हैं। सर्वोच्च अदालत के नैतिक संकेत के बावजूद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को तैयार नहीं हैं। सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया भी जेल में हैं। जो बचे-खुचे मंत्री हैं, वे सिर्फ बयानवीर हैं अथवा उपराज्यपाल पर दोषारोपण करने वाले नेता हैं। वे ‘बेचारगी के प्रतिनिधि’ हैं, जो बयान देने या जांच की लीपापोती के अलावा कुछ नहीं कर सकते। तो फिर ‘मंत्री’ क्यों बने बैठे हैं? इस्तीफा देकर, सडक़ पर उतर कर, लोकतंत्र की लड़ाई क्यों नहीं लड़ते? दिल्ली में सरकार ‘आप’ की है और नगर निगम पर भी वह काबिज है। मेयर शैली ओबरॉय ‘आप’ की ही नेता हैं। इन जवाबदेहियों का जिक्र इसलिए करना पड़ रहा है या ये सवाल इसलिए उठाए जा रहे हैं कि राजधानी दिल्ली में विधानसभा स्तर पर जो सरकार है, वह गायब है, लिहाजा स्थानीय दिल्ली ‘अनाथ’ महसूस कर रही है। तीन युवा छात्रों की पानी के तेज बहाव में, एक इमारत के बेसमेंट में फंस कर, मौत हो गई। यह आपदा या हादसा नहीं, हत्याकांड है। उस इमारत में आईएएस की कोचिंग देने वाला प्रख्यात केंद्र चलता है, जिसके बड़े-बड़े विज्ञापन अखबारों में छपते हैं और युवा छात्रों को आकर्षित करते रहे हैं। यह केंद्र कोचिंग देने की फीस लाखों में लेता है, लेकिन सुविधा और सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। उस इमारत के बेसमेंट में लाइब्रेरी बनाई गई है, जो कानूनन अवैध है। जो छात्र बच गए हैं, उनकी नियति ही ऐसी थी, अलबत्ता पानी का बहाव किसी बाढ़ से कम नहीं था।
वहां इतना तेज पानी कैसे घुसा? इसी सवाल के गर्भ में तमाम भ्रष्टाचार और कदाचार निहित हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के पास मुखर्जी नगर की वह घटना आज भी याद आती है, जब आग से बचने के लिए युवा छात्रों ने खिड़कियों से ही छलांग लगा दी थी अथवा किसी रस्सी के सहारे, जलते हुए कमरे से, बाहर कूद पाए थे। कुछ मौतें भी हुई थीं। वहां भी आईएएस, आईपीएस बनने का सपना पाले युवा छात्र पढ़ते हैं। वहां भी बंदप्राय: कोचिंग सेंटर में आग लगी थी। अभी 4-5 दिन पहले दिल्ली के पटेल नगर में एक युवा करंट की चपेट में आकर मारा गया। वह भी आईएएस की तैयारी कर रहा था। ये आपराधिक नाकामियों की भयावह कथाएं हैं, लापरवाही को नंगा करती हैं, आखिर दिल्ली में ये हत्याकांड क्यों हो रहे हैं? व्यवस्था और निगरानी की बुनियादी और प्राथमिक जिम्मेदारी किसकी है? जाहिर है कि केजरीवाल की सरकार और ‘आप’ के नगर निगम की जिम्मेदारी है। ड्रेनेज सिस्टम और नालों की सफाई कौन देखेगा? दिल्ली में तो इतनी बारिश भी नहीं हुई है कि व्यवस्थाएं ही डूब जाएं। आईएएस कोचिंग सरीखे 550 से अधिक केंद्र दिल्ली में चल रहे हैं, जिनमें से 60-65 ही पूरी तरह ‘वैध’ हैं। अधिकतर इमारतों में अग्नि-सुरक्षा के न तो बंदोबस्त हैं और न ही प्रमाणपत्र हैं। उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है, क्योंकि ऊपर तक ‘मुंह में दही’ जमाई हुई है। अब ये नजराने किस स्तर तक दिए जाते रहे हैं, यह जांच का विषय है, जिसका कोई ठोस निष्कर्ष कभी सामने नहीं आएगा। इस हत्याकांड के बाद युवाओं में आक्रोश है, वे विद्रोह पर उतारू हैं, हत्या का केस दर्ज किए जाने के आग्रह कर रहे हैं।
अब प्रशासन ने इमारतों के ऑडिट करने का फैसला लिया है। उससे भी क्या होगा, क्योंकि प्रशासन ने ही आंखें मूंदी हुई हैं, कान भी बंद कर रखे हैं, संज्ञान पर सन्नाटा छाया है। शोकाकुल माता-पिता इक्कठे होकर प्रधानमंत्री आवास पर जाएं और उन्हें मुलाकात के लिए बाध्य करें, ताकि राजधानी में कमोबेश युवा छात्रों की कोचिंग वाले केंद्रों की व्यवस्था नए सिरे से दुरुस्त कराई जा सके। दिल्ली के उप राज्यपाल छात्रों से मिले हैं और उनकी समस्याओं का संज्ञान लिया है। उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार, दोनों को इस विषय में सोचना होगा। छात्रों के लिए सुरक्षित माहौल उपलब्ध करवाना दोनों की जिम्मेदारी है क्योंकि शासन पर दोनों का ही अधिकार है। ऐसे हादसे दोबारा न हों, इसके लिए कारगर व्यवस्था करनी होगी।